• 2025-06-08

Wildlife Sanctuary Mining In Jharkhand: झारखंड में वन्य जीव अभयारण्य बनाम खनन,एक बड़ा विवाद

Wildlife Sanctuary Mining In Jharkhand: झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के सारंडा वन क्षेत्र में वन्य जीव अभयारण्य की घोषणा को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है।
राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 23 जुलाई तक इस संबंध में निर्णय लेना है, लेकिन खान विभाग इसके विरोध में है क्योंकि इससे लगभग 4 बिलियन टन लौह अयस्क के भंडार प्रभावित होंगे
जिनसे करीब 25 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिलने की संभावना थी।

एनजीटी ने सारंडा में वन्य जीव अभयारण्य बनाने का निर्देश दिया था, जिसे राज्य सरकार ने नहीं माना, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था। अब राज्य सरकार ने 57,519.41 हेक्टेयर क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य और 13.06 वर्ग किमी क्षेत्र को संरक्षण रिजर्व के रूप में अधिसूचित करने का प्रस्ताव किया है।
खान विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इस बढ़े हुए इलाके में लगभग सारे लौह अयस्क खदान और अन्य खनिजों के खदान आ रहे हैं। वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के 10 किमी रेडियस को इको सेंसटिव जोन घोषित करना होता है, जिसमें खनन कार्य प्रतिबंधित होता है। इससे पूरे चाईबासा क्षेत्र में 90 से अधिक लौह अयस्क खदानें प्रभावित होंगी, जिनमें से कई को नीलामी के लिए राज्य सरकार तैयार कर चुकी है।
राजस्व की संभावनाएं
चाईबासा में लौह अयस्क का अभी चार बिलियन टन रिजर्व है। साथ ही आने वाले 20-30 सालों में इन खदानों से लगभग 25 लाख करोड़ रुपये के लौह अयस्क निकलने की संभावना है, जिससे राज्य सरकार को भी करीब पांच लाख करोड़ रुपये बतौर रॉयल्टी प्राप्त हो सकता है।
राज्य सरकार ने इस मामले में सुझाव देने के लिए एक उच्चस्तरीय एक्सपर्ट कमेटी बनाई है, जो संभावित विकल्पों पर विचार कर रही है। निदेशक खान ने भी एक कमेटी बनाई है, जो डाटा तैयार कर रही है कि कितने माइनिंग जोन दायरे में आ रहे हैं और इसे कैसे बचाया जा सकता है। अब देखना होगा कि राज्य सरकार इस विवाद को कैसे सुलझाती है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कैसे करती है।
पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन
वन्य जीव अभयारण्य की घोषणा से जहां एक ओर पर्यावरण और वन्य जीवन की रक्षा होगी, वहीं दूसरी ओर इससे खनन कार्य प्रभावित होगा, जिससे राज्य सरकार को राजस्व की हानि होगी। ऐसे में राज्य सरकार को पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है।

झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के सारंडा वन क्षेत्र में वन्य जीव अभयारण्य की घोषणा को लेकर विवाद एक बड़ी चुनौती है। राज्य सरकार को पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है, ताकि वन्य जीवन की रक्षा के साथ-साथ राज्य के विकास को भी बढ़ावा मिल सके। अब देखना होगा कि राज्य सरकार इस विवाद को कैसे सुलझाती है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कैसे करती है।

राज्य सरकार को चाहिए कि वह पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाने के लिए एक व्यापक योजना बनाए। इसमें वन्य जीवन की रक्षा के साथ-साथ खनन कार्य को भी बढ़ावा देने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जा सकती है। इससे राज्य सरकार को राजस्व की हानि नहीं होगी और वन्य जीवन की रक्षा भी हो सकेगी।
आखिरी फैसला
अब देखना होगा कि राज्य सरकार इस विवाद को कैसे सुलझाती है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कैसे करती है। यह फैसला न केवल राज्य के विकास के लिए महत्वपूर्ण होगा, बल्कि वन्य जीवन की रक्षा के लिए भी यह एक बड़ी चुनौती होगी।