Jamshedpur: झारखंड की आर्थिक राजधानी और लौहनगरी के नाम से मशहूर जमशेदपुर की चमक-धमक के पीछे एक गहरी सच्चाई छिपी है। शहर के गैर कंपनी इलाकों, बागबेड़ा, किताडीह, हरहरगुट्टू और मानगो के लोग आज भी बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं।
कहने को यह शहर औद्योगिक पहचान और टाटा जैसी बड़ी कंपनी का गढ़ है, लेकिन कंपनी के कमांड एरिया से बाहर के इलाके अब भी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। जल संकट की स्थिति ऐसी है कि लोगों की सुबह की शुरुआत और रात का अंत पानी के लिए संघर्ष से होता है। स्कूली छात्र-छात्राएं, गृहणियां और नौकरीपेशा युवा, सभी को एक-एक बाल्टी पानी के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है।
भूगर्भीय जलस्तर लगातार गिर रहा है और बोरिंग अब आम लोगों की पहुंच से बाहर हो गया है। कुछ समाजसेवियों की ओर से टैंकर के माध्यम से अस्थायी जलापूर्ति की जा रही है, लेकिन जैसे ही टैंकर किसी मोहल्ले में पहुंचता है, वहां भगदड़ जैसी स्थिति बन जाती है।
सरकार द्वारा बनाई गई जलापूर्ति योजनाएं या तो अधूरी हैं या शुरू होने से पहले ही दम तोड़ चुकी हैं। प्रशासन और नेताओं के तमाम दावे ज़मीनी हकीकत के सामने बेमानी लगते हैं।
हैरानी की बात यह भी है कि टाटा कंपनी भी पानी सरकार से खरीदती है और अपने कमांड एरिया में उसे सप्लाई कर मुनाफा कमा रही है। सवाल यह उठता है कि क्या सरकार टाटा कंपनी के इर्द-गिर्द बसे इन गैर कंपनी इलाकों को भी बेहतर जीवनशैली और मूलभूत सुविधाएं नहीं दे सकती?
आज जरूरत है इस जल संकट को गंभीरता से लेने की, ताकि आर्थिक राजधानी का तमगा सिर्फ नाम का न रह जाए, बल्कि वहां के हर नागरिक की बुनियादी ज़रूरतें भी पूरी हों।