पूरे देश के साथ-साथ कोल्हान में भी मजदूरों ने ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के बैनर तले जिला स्तरीय
strike on 9 July : पूरे देश के साथ-साथ कोल्हान में भी मजदूरों ने ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के बैनर तले जिला स्तरीय प्रदर्शन और माननीय प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन सौंपने के अलावा अपने कार्यस्थलों पर भी स्वतंत्र रूप से विरोध प्रदर्शन किया।
ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच की ओर से जानकारी दी गई कि राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त मंच ने वर्तमान राष्ट्रीय परिस्थिति की समीक्षा के बाद, 20 मई को प्रस्तावित मजदूरों की देशव्यापी आम हड़ताल को स्थगित करते हुए, इसे 9 जुलाई पुनर्निर्धारित किया है।
देश के जिम्मेदार और देशभक्त नागरिकों के रूप में, सभी तैयारियां पूरी होने के बावजूद, हड़ताल को स्थगित करना सरकार या पूंजीपतियों के लिए राहत नहीं , बल्कि संघर्ष को और अधिक व्यापक और तीव्र बनाने की रणनीति का एक हिस्सा मात्र है ।
चार श्रम संहिताओं (लेबर कोड) को रद्द करने तथा अन्य मांगों को लेकर कार्यस्थल तथा श्रमिकों के आवासीय क्षेत्रों में उनकी जागरूकता के लिए चलने वाला जनसंपर्क एवं प्रचार भविष्य में भी जारी रहेगा।
संयुक्त मंच की ओर से ये भी बताया गया कि, हड़ताल की घोषणा और देश भर में संबंधित अधिकारियों को लाखों नोटिस देने के बावजूद, केंद्र और कई राज्य सरकारों के संरक्षण में नियोक्ता वर्ग मजदूरों पर हमले जारी रखे हुए है।
काम के घंटों में मनमानी वृद्धि, न्यूनतम मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा के अधिकारों का उल्लंघन तथा मजदूरों की गैरकानूनी छंटनी आम हो गई है। *यह सब कुख्यात श्रम संहिताओं को लागू करने की साजिश का हिस्सा है।
इतना ही नहीं, ट्रेड यूनियनों की लगातार मांग के बावजूद सरकार ने अब तक न तो किसी प्रतिनिधिमंडल से वार्ता की है, न ही भारतीय श्रम सम्मेलन बुलाया है।
संयुक्त मंच के केन्द्रीय कार्यक्रम के तहत, आमबगान मैदान से एक प्रभावशाली रैली निकाली गई, जो जुबली पार्क गेट पर समाप्त हुई, जहां एक नुक्कड़ सभा आयोजित की गई, जिसमें वक्ताओं ने बताया कि माननीय प्रधानमंत्री को सौंपे गए ज्ञापन में लंबित 17 सूत्री राष्ट्रीय मांगों और जिले की ताम्र खदानों और संयंत्र के पुनरुद्धार की मांगों को रखा गया है।
वक्ताओं ने कहा कि एक ओर तो कॉरपोरेट घरानों को वित्तीय और कानूनी रूप से छूट, रियायत और प्रोत्साहन दिया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर विभिन्न तरीकों से राष्ट्रीय संसाधनों, सरकारी उपक्रमों और सेवाओं का निजीकरण किया जा रहा है, जिससे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
जिसकी भरपाई न केवल कल्याणकारी योजनाओं, सामाजिक सुरक्षा, सब्सिडी , स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य सार्वजनिक व्यय में लगातार कटौती करके की जा रही है, बल्कि आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं पर भी जीएसटी ,सेस ,उत्पाद शुल्क लगाकर की जा रही है। सरकारी क्षेत्र में रिक्तियां या तो जस की तस बनी हुई हैं या फिर कम वेतन और अमानवीय कार्य स्थितियों के साथ आउटसोर्स या अनुबंधित की जा रही हैं।
तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद न केवल उनकी मांगों पर दिए गए आश्वासन अधूरे रह गए हैं, बल्कि पिछले दरवाजे से कृषि कानूनों के प्रावधानों को लागू करके किसानों को कॉरपोरेट्स का बंधुआ बनाने की कोशिश की जा रही है। कामकाजी महिलाओं का शोषण तथा सेवानिवृत्त कामगारों का बढ़ता असुरक्षित जीवन भी चिंता का विषय है।
आर्थिक रूप से अल्पसंख्यक यानी कॉरपोरेट्स का तुष्टिकरणको की कीमत पर एवं देश की वास्तविक बहुसंख्यक आबादी के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता की कमी के कारण, ठेका श्रमिकों, प्रवासी श्रमिकों, निर्माण, असंगठित, ग्रामीण और कृषि श्रमिकों के साथ-साथ अनौपचारिक और कानूनी रूप से अपरिभाषित श्रमिकों की पीड़ाएं बदतर होती जा रही हैं।
संयुक्त मंच ने सभी, जन संगठनों, छात्र-युवाओं, महिलाओं और लोकतांत्रिक प्रगतिशील आबादी की सभी तबकों से अपील की है कि वे इस संघर्ष को और अधिक मजबूत बनाएं और कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के विरुद्ध एकजुट होकर आवाज़ बुलंद करें।
नुक्कड़ सभा में , एटक के आर.एस. राय, हीरा अर्काने सीटू के बिश्वजीत देब, संजय कुमार, एआईयूटीयूसी के लिली दास और सुमित राय , एफएमआरएआई के सुब्रत बिस्वास और पी.आर. गुप्ता ने संबोधित किया।